यह उत्सव कोविड-19 संबंधी प्रोटोकॉल के सख्त अनुपालन के बीच केवल पुरी में आयोजित होगा। केवल चयनित कोविड निगेटिव और टीके की दोनों खुराकें ले चुके सेवकों को ही 'स्नान पूर्णिमा और अन्य कार्यक्रमों में हिस्सा लेने की अनुमति होगी। पिछले वर्ष के कार्यक्रम के दौरान लगाई गई सभी पाबंदियां इस बार भी लागू रहेंगी। श्रद्धालु इन कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण टेलीविजन और वेबकास्ट पर देख पाएंगे।
नौ दिन तक चलने वाली रथ यात्रा तय कार्यक्रम के अनुरूप शुरू होगी और “महज 500 सेवकों को इस दौरान रथ खींचने की अनुमति होगी।”
भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा का विशाल रथ 10 दिनों के लिए बाहर निकलता है। इस यात्रा में सबसे आगे बलभद्र का रथ चलता है जिसे तालध्वज कहा जाता है। मध्य में सुभद्रा का रथ चलता है जिसे दर्पदलन या पद्म रथ कहा जाता है। सबसे अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ चलता है जिसे "नंदी घोष" कहा जाता है।
इस साल 12 जुलाई से रथ यात्रा शुरू हो जाएगी और देवशयनी एकादशी यानी 20 जुलाई को समाप्त होगी। यात्रा के पहले दिन भगवान जगन्नाथ प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर में जाते हैं।
महत्व
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस रथ यात्रा को देखने मात्र से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- जगन्नाथ मंदिर भारत के पवित्र 4 धामों में से एक है। यह मंदिर 800 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के दर्शन मात्र से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
खिचड़ी भोग
यहां के खिचड़ी भोग की बहुत महिमा है। इसकी एक रोचक कथा है। जगन्नाथ पुरी में एक भक्त महिला रहती थीं कर्माबाई, जो जगन्नाथजी की पूजा पुत्र रूप में करती थीं। एक दिन उसकी इच्छा भगवान को अपने हाथों से बनाकर कुछ खिलाने की हुई। अपनी भक्तिन माता की इच्छा जान भगवान उनके सामने प्रकट हो गए और बोले,‘माता, बहुत भूख लगी है।’ कर्माबाईने खिचड़ी बनाई थी। भगवान ने बहुत रुचि के साथ खिचड़ी खाई और कहा, ‘मां, मेरे लिए रोज खिचड़ी बनाया करो।’ एक दिन एक महात्मा कर्माबाई के पास आए। उन्होंने सुबह-सुबह कर्माबाई को बिना स्नान किए खिचड़ी बनाते देखा तो कहा कि पूजा-पाठ के नियम होते हैं।अगले दिन कर्माबाई ने ऐसे ही किया। इसमें देर हो गई। तभी भगवान खिचड़ी खाने पहुंच गए। बोले, ‘शीघ्र करो मां, उधर मेरे मंदिर के पट खुल जाएंगे।’ जब कर्माबाई ने खिचड़ी बनाकर परोसी, तो वह जल्दी-जल्दी खाकर मंदिर को भागे। उनके मुंह पर जूठन लगी रह गई थी।
मंदिर के पुजारी ने देखा, तो पूछा, ‘यह क्या है भगवन्!’ भगवान ने कर्माबाई के यहां रोज सुबह खिचड़ी खाने की बात बताई। यह क्रम चलता रहा। एक दिन कर्माबाई की मृत्यु हो गई। मंदिर के पुजारी ने देखा, भगवान की आंखों से अश्रुधारा बह रही है। पुजारी ने कारण पूछा तो भगवान ने बताया, ‘मेरी मां परलोक चली गई, अब मुझे इतने स्नेह से खिचड़ी कौन खिलाएगा!’ पुजारी ने कहा, ‘प्रभु! यह काम हम करेंगे।’ माना जाता है कि तब से प्रात:काल भगवान को खिचड़ी का भोग लगाने की परम्परा चली आ रही है।