बताया जा रहा है कि ललन सिंह और महेश्वर हजारी काफी समय से दिल्ली में ही रहकर इस ऑपरेशन की तैयारी कर रहे थे, जिसमें बीजेपी का भी उन्हें खुलकर समर्थन मिल ।
मद्धम हुई चिराग !
परिवार की बात करें तो सांसद चाचा पशुपति पारस और सांसद चचेरा भाई प्रिंस राज, चिराग पासवान के कार्यशैली से असंतुष्ट थे. प्रिंस राज की नाराजगी इस बात को को लेकर थी कि बिहार प्रदेश लोक जनशक्ति पार्टी का अध्यक्ष पद का बंटवारा करके राजू तिवारी को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया था.
पशुपति पारस की भी नाराजगी उस समय से देखी जा रही है जब से चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग होकर और खास तौर पर जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार दिए थे. पशुपति पारस नहीं चाहते थे कि लोक जनशक्ति पार्टी एनडीए से अलग होकर विधानसभा चुनाव लड़े, मगर इसके बावजूद भी एकतरफा फैसला करते हुए चिराग पासवान ने ऐसा किया जिसको लेकर पशुपति पारस नाराज थे. और, बिहार चुनाव में पार्टी को मिली शर्मनाक हार के बाद से उनकी नाराजगी और तल्खी बढ़ती ही गई.
पिछली सरकार में पशुपति पारस नीतीश सरकार में मंत्री थे और दोनों नेताओं के बीच बेहतर संबंध भी हुआ करते थे. इसके साथ ही चिराग पासवान के द्वारा पार्टी के अन्य सांसदों को भी तरजीह नहीं दी जा रही थी जिसका फायदा ललन सिंह और महेश्वर हजारी ने अपने ऑपरेशन में उठाया ।
बता दें कि विधानसभा चुनाव के बाद एक मौका ऐसा भी आया था जब लोजपा सांसद चंदन सिंह ने नीतीश कुमार से उनके आवास पर जाकर मुलाकात की थी. इस मुलाकात के बाद से ही अटकलें लगनी तेज हो गई थी कि लोक जनशक्ति पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है और पार्टी के अंदर बगावत शुरू हो गई है. अब बिहार चुनाव के कुछ वक्त बाद ही लोक जनशक्ति पार्टी टूट गई है और चिराग पासवान अकेले खड़े हैं.